भजन - बलशाली बलिया में निकला
बलशाली बलिया में निकला , एक सूरज चमकीला |
सद्गुरु पद पाया है उसने , देखो उसकी लीला ||
मुनि स्कम्भ पिता है उनके , माता मुक्ति देवी |
ब्रह्मलोक कैसा है सुन लो , उनकी आँखों देखी ||
लुप्त गुप्त सी ब्रह्म विद्या को , पुरुषार्थ के बल पर |
खोज निकाला वर्तमान में , न कुछ छोड़ा कल पर ||
नित्य षष्ठ वस्तु से बनती , यह सृष्टि यह दुनिया |
कर्म चक्र में फसा हुआ है , क्या पापी क्या पुनिया ||
बंधन में जब पड़ा राष्ट्र था , और पड़ी थी आत्मा |
धरा धाम पर प्रकट हो गए , सद्गुरु बन परमात्मा ||
योग विहंगम सर्वश्रेष्ठ है , यही एक है राह |
शीश झुकाओ सब ले जाओ , पूरी कर लो चाह ||
मन को रोको धोवो उसको , भेजो नवम कमल में |
मोह निशा को त्याग के बैठो , सद्गुरु चरण कमल में ||
खुद को देखो ब्रह्म मिलेगा , सीखो सद्गुरु युक्ति |
गुरु कृपा से सहज मिलेगी , दोनों भक्ति मुक्ति ||
कुछ न दुर्लभ कहा गुरु ने , खोजा योग विहंगम |
अंतिम लक्ष्य बनाया उसने , जीव ब्रह्म का संगम ||
जीते जी ही मुक्ति संभव , छोड़ो आना जाना |
गुरु आज्ञा में रह कर सीखो , अंतर ध्यान लगाना ||
यह सन्देश दिया गुरु ने , बन गया संत समाज |
धूम मची है अखिल विश्व में , ब्रह्म विद्या की आज ||
धन्य कर दिया वंश श्रृंगी का , पकड़ी का यह लाल |
हमे पकड़ के कभी न छोड़े , छुए कभी न काल ||
बलशाली बलिया में निकला , एक सूरज चमकीला |
सद्गुरु पद पाया है उसने , देखो उसकी लीला ||
मुनि स्कम्भ पिता है उनके , माता मुक्ति देवी |
ब्रह्मलोक कैसा है सुन लो , उनकी आँखों देखी ||
लुप्त गुप्त सी ब्रह्म विद्या को , पुरुषार्थ के बल पर |
खोज निकाला वर्तमान में , न कुछ छोड़ा कल पर ||
नित्य षष्ठ वस्तु से बनती , यह सृष्टि यह दुनिया |
कर्म चक्र में फसा हुआ है , क्या पापी क्या पुनिया ||
बंधन में जब पड़ा राष्ट्र था , और पड़ी थी आत्मा |
धरा धाम पर प्रकट हो गए , सद्गुरु बन परमात्मा ||
योग विहंगम सर्वश्रेष्ठ है , यही एक है राह |
शीश झुकाओ सब ले जाओ , पूरी कर लो चाह ||
मन को रोको धोवो उसको , भेजो नवम कमल में |
मोह निशा को त्याग के बैठो , सद्गुरु चरण कमल में ||
खुद को देखो ब्रह्म मिलेगा , सीखो सद्गुरु युक्ति |
गुरु कृपा से सहज मिलेगी , दोनों भक्ति मुक्ति ||
कुछ न दुर्लभ कहा गुरु ने , खोजा योग विहंगम |
अंतिम लक्ष्य बनाया उसने , जीव ब्रह्म का संगम ||
जीते जी ही मुक्ति संभव , छोड़ो आना जाना |
गुरु आज्ञा में रह कर सीखो , अंतर ध्यान लगाना ||
यह सन्देश दिया गुरु ने , बन गया संत समाज |
धूम मची है अखिल विश्व में , ब्रह्म विद्या की आज ||
धन्य कर दिया वंश श्रृंगी का , पकड़ी का यह लाल |
हमे पकड़ के कभी न छोड़े , छुए कभी न काल ||
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