उद्घोष
अदभुत मारग योग विहंगम , मैं तुमको बतलाऊँगा |
यदि विद्यिवत तुम साधन करिहो , अमरलोक पहुँचाऊँगा ||
प्रकृति आधार तोहि छोड़वाऊं , निज स्वरुप ठहराऊंगा |
सुरति उलटी के गगन चढ़ाऊँ , डोरी मकर धराऊँगा ||
पिण्ड ब्रह्माण्ड शुन्य जो अरषठ , ता ऊपर बैठाऊंगा |
अनुभव दरशे मोती बरषे , अमिय नद्द अन्हवाऊंगा ||
शुद्ध रूप तोहि हंस बनाऊ , परम पुरुष दिखलाऊंगा |
वहां के दृश्य कौन मैं वरणो , वाणी बुद्धि न पाउँगा ||
महाप्रभु अनंत दयामय , उनसे तोहि मिलाऊँगा |
कहैं 'सदाफल' परमान्दा , आवागमन मिटाऊंगा ||
अदभुत मारग योग विहंगम , मैं तुमको बतलाऊँगा |
यदि विद्यिवत तुम साधन करिहो , अमरलोक पहुँचाऊँगा ||
प्रकृति आधार तोहि छोड़वाऊं , निज स्वरुप ठहराऊंगा |
सुरति उलटी के गगन चढ़ाऊँ , डोरी मकर धराऊँगा ||
पिण्ड ब्रह्माण्ड शुन्य जो अरषठ , ता ऊपर बैठाऊंगा |
अनुभव दरशे मोती बरषे , अमिय नद्द अन्हवाऊंगा ||
शुद्ध रूप तोहि हंस बनाऊ , परम पुरुष दिखलाऊंगा |
वहां के दृश्य कौन मैं वरणो , वाणी बुद्धि न पाउँगा ||
महाप्रभु अनंत दयामय , उनसे तोहि मिलाऊँगा |
कहैं 'सदाफल' परमान्दा , आवागमन मिटाऊंगा ||
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