ये तो सर्व-विदित हैं की सदगुरु अपने शिष्यों पर सदा दया रखते हैं एवं उनका योग क्षेम पूरा करते हैं। इसका अनुभव अपने जीवन में घटित कुछ ऐसी घटनाये जो आज भी मेरे मानस पटल पर सजीव है और आज जो भी मैं हूँ सब सदगुरु की दया दृष्टि का ही प्रतिफल है। सदगुरु सत्ता कैसे विषम परिस्थियों में अपने शिष्यों की रक्षा करते हैं , इसी से जुडी एक संस्मरण आपसे साझा करने की प्रेरणा सदगुरु दया से हुई।
मैं गणेश प्रसाद झारखण्ड राज्य में बोकारो जिला के बेरमो कोयलांचल क्षेत्र का निवासी हूँ। यहाँ कोल् फील्ड लिमिटेड से २०१७ में सेवा निवृत हुआ। परिवार में पत्नी समेत तीनो सुपुत्र विहंगम योग संस्थान से जुड़े हुए हैं और सदगुरु की दया से आज सभी अपने क्षेत्र में प्रगतिशील हैं। ये घटना २०१२ की हैं जब मै अपने सबसे छोटे सुपुत्र चन्दन कुमार, जिनकी इंजीनियरिंग की पढाई पूरी हो चुकी तथा दिल्ली में जॉब लगी थी, के साथ ट्रैन से दिल्ली के लिए जा रहा था। हमने चंद्रपुरा जंक्शन से शाम की ट्रैन झारखण्ड एक्सप्रेस पकड़ी जो की अगली सुबह दिल्ली पहुचानी थी।
ट्रैन अपने द्रुत गति से दिल्ली के लिए अग्रसर थी। मन में ख़ुशी थी और संतुष्टि का भाव परस्पर उठ आता था , सदगुरु की दया से आज मेरे तीनो पुत्र अपने पैरो पे खड़े थे। ये सब उस मालिक की दया थी की सारे सुपुत्र अपने अपने प्रारब्ध के अनुसार जॉब में लगे थे। ट्रैन चली जा रही थी शाम से कब रात हुई इसका पता ही नहीं चला। स्टेशन निकलते गए गया औरंगाबाद इत्यादि स्टेशन पर ट्रैन यथावत गति से अपनी दूरी तय करती गयी। रात्रि भोजन के पश्चात् पुत्र चन्दन सोने की तयारी करने लगे। चन्दन की जॉइनिंग Aricent कंपनी में थी जिसके लिए सारे ओरिजिनल सर्टिफिकेट साथ ले जा रहा था जो की एक बैग में मेरे पास ही था। चन्दन साइड लोअर सीट पे सो गए। मध्य रात्रि के ३ घंटे बाद ट्रैन मुग़ल सराय जंक्शन से गुजरनी थी जो की ट्रेनों से सामान चोरी के लिए प्रसिद्ध थी। जब ट्रैन लगभग उसी क्षेत्र में थी तो सदगुरु प्रेरणा से मैं साधनारत था |
साधना के पश्चात् मैं अपने सीट पर बैठा रहा।
सुबह जब सबकी नींद खुली तो लोग किसी चोरी की चर्चा करते हुए नज़र आ रहे थे। उतसुक्तावस मैंने किसी एक सज्जन से पूछा क्या हुआ सुबह से किसी अनजान चोरी की शोर गुल सा प्रतीत हो रहा है। सज्जन ने कहा भाई साहब कल रात हमारे बोगी में कुछ चोर पैसेंजर के रूप में घूस आये थे और देर रात सभी का कुछ न कुछ सामान कोई बैग, अटैची या सुटकेश चुरा ले गए। थोड़ी ही देर बाद एक युवती की रोने की सिसकी सुनाई दी, उन चोरो ने उसके सारे सामन चुरा ले गए थे। अब उसके पास न तो पैसे थे न कुछ। उसकी असहाय हालत और परिस्थिति को देख हमारा भी दिल द्रवित हो आया। फिर हमने आपस में ही कुछ पैसे चंदा करके उसको दिया ताकि कम से कम अपने घर तक तो जा सके। इसी सब में हमारा ध्यान अपने बैग पर पड़ा, जहाँ सभी यात्री के कुछ न कुछ सामान पर उन चोरो ने हाथ साफ़ किया वही हमारा सामान सही सलामत उसी जगह पर सुरक्षित रखा हुआ था। मन ही मन सदगुरु सत्ता को नमन और उनकी दया को साक्षी करते हुए रोम रोम में श्रद्धा के भाव पल्लिवत हो रहा था की यदि आज उनकी दया ना होती और अगर बाकी लोगो की तरह हमारा बैग भी चोरी हो गया होता तो सुपुत्र चन्दन का करियर शुरू होते ही कई उलझनों से घिर जाती। ओरिजिनल सर्टिफिकेट का पुनर्निमाण कितना कष्टदायक है ये तो सब जानते हैं।
आज चन्दन एक मल्टीनेशनल कंपनी में हैदराबाद में कार्यरत है। लेकिन आज भी वो घटना जब भी स्मरण होता है तो एक अजीब सा डर डॉक्यूमेंट के खोने का और साथ ही एक विश्वास सदगुरु प्रभु पर हर क्षण शिष्यों की रक्षा के लिए दोनों भाव दिल में घर कर जाते हैं और फिर सदगुरु चरणों में शीश श्रद्धा से नतमष्तक हो जाता है और मन में यही भाव आता है की ....
मैं गणेश प्रसाद झारखण्ड राज्य में बोकारो जिला के बेरमो कोयलांचल क्षेत्र का निवासी हूँ। यहाँ कोल् फील्ड लिमिटेड से २०१७ में सेवा निवृत हुआ। परिवार में पत्नी समेत तीनो सुपुत्र विहंगम योग संस्थान से जुड़े हुए हैं और सदगुरु की दया से आज सभी अपने क्षेत्र में प्रगतिशील हैं। ये घटना २०१२ की हैं जब मै अपने सबसे छोटे सुपुत्र चन्दन कुमार, जिनकी इंजीनियरिंग की पढाई पूरी हो चुकी तथा दिल्ली में जॉब लगी थी, के साथ ट्रैन से दिल्ली के लिए जा रहा था। हमने चंद्रपुरा जंक्शन से शाम की ट्रैन झारखण्ड एक्सप्रेस पकड़ी जो की अगली सुबह दिल्ली पहुचानी थी।
ट्रैन अपने द्रुत गति से दिल्ली के लिए अग्रसर थी। मन में ख़ुशी थी और संतुष्टि का भाव परस्पर उठ आता था , सदगुरु की दया से आज मेरे तीनो पुत्र अपने पैरो पे खड़े थे। ये सब उस मालिक की दया थी की सारे सुपुत्र अपने अपने प्रारब्ध के अनुसार जॉब में लगे थे। ट्रैन चली जा रही थी शाम से कब रात हुई इसका पता ही नहीं चला। स्टेशन निकलते गए गया औरंगाबाद इत्यादि स्टेशन पर ट्रैन यथावत गति से अपनी दूरी तय करती गयी। रात्रि भोजन के पश्चात् पुत्र चन्दन सोने की तयारी करने लगे। चन्दन की जॉइनिंग Aricent कंपनी में थी जिसके लिए सारे ओरिजिनल सर्टिफिकेट साथ ले जा रहा था जो की एक बैग में मेरे पास ही था। चन्दन साइड लोअर सीट पे सो गए। मध्य रात्रि के ३ घंटे बाद ट्रैन मुग़ल सराय जंक्शन से गुजरनी थी जो की ट्रेनों से सामान चोरी के लिए प्रसिद्ध थी। जब ट्रैन लगभग उसी क्षेत्र में थी तो सदगुरु प्रेरणा से मैं साधनारत था |
साधना के पश्चात् मैं अपने सीट पर बैठा रहा।
सुबह जब सबकी नींद खुली तो लोग किसी चोरी की चर्चा करते हुए नज़र आ रहे थे। उतसुक्तावस मैंने किसी एक सज्जन से पूछा क्या हुआ सुबह से किसी अनजान चोरी की शोर गुल सा प्रतीत हो रहा है। सज्जन ने कहा भाई साहब कल रात हमारे बोगी में कुछ चोर पैसेंजर के रूप में घूस आये थे और देर रात सभी का कुछ न कुछ सामान कोई बैग, अटैची या सुटकेश चुरा ले गए। थोड़ी ही देर बाद एक युवती की रोने की सिसकी सुनाई दी, उन चोरो ने उसके सारे सामन चुरा ले गए थे। अब उसके पास न तो पैसे थे न कुछ। उसकी असहाय हालत और परिस्थिति को देख हमारा भी दिल द्रवित हो आया। फिर हमने आपस में ही कुछ पैसे चंदा करके उसको दिया ताकि कम से कम अपने घर तक तो जा सके। इसी सब में हमारा ध्यान अपने बैग पर पड़ा, जहाँ सभी यात्री के कुछ न कुछ सामान पर उन चोरो ने हाथ साफ़ किया वही हमारा सामान सही सलामत उसी जगह पर सुरक्षित रखा हुआ था। मन ही मन सदगुरु सत्ता को नमन और उनकी दया को साक्षी करते हुए रोम रोम में श्रद्धा के भाव पल्लिवत हो रहा था की यदि आज उनकी दया ना होती और अगर बाकी लोगो की तरह हमारा बैग भी चोरी हो गया होता तो सुपुत्र चन्दन का करियर शुरू होते ही कई उलझनों से घिर जाती। ओरिजिनल सर्टिफिकेट का पुनर्निमाण कितना कष्टदायक है ये तो सब जानते हैं।
आज चन्दन एक मल्टीनेशनल कंपनी में हैदराबाद में कार्यरत है। लेकिन आज भी वो घटना जब भी स्मरण होता है तो एक अजीब सा डर डॉक्यूमेंट के खोने का और साथ ही एक विश्वास सदगुरु प्रभु पर हर क्षण शिष्यों की रक्षा के लिए दोनों भाव दिल में घर कर जाते हैं और फिर सदगुरु चरणों में शीश श्रद्धा से नतमष्तक हो जाता है और मन में यही भाव आता है की ....
"मेरा रक्षक महा प्रभु है , चिंता मन तू काहे किया "
गणेश प्रसाद साव
स्थान - बेरमो कोयलांचल सेंट्रल कॉलोनी
पो० - मकोली (फुसरो )
जिला - बोकारो (झारखण्ड )
पिन - 829144
मो० न० - 7488782178
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