Wednesday, February 28, 2018

योग तत्व दर्शन

                             योग तत्व दर्शन   

  अध्यात्म विद्या के अंतर्गंत वाह्य तत्व ज्ञान एवं अभ्यन्तर भेद साधन ये दो प्रमुख पक्ष है | इनका पूर्ण बोध होने पर ही जिज्ञासु तथा साधक सद्गुरु शरण में रह कर , चिरकाल तक साधना कर जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य को प्राप्त करते हैं | 
         सर्व प्रथम वाह्य तत्व ज्ञान का निर्भ्रांत बोध होना आवश्यक है | विगत ढाई हज़ार वर्षो से विभिन्न मतवादों का प्रादुर्भाव हुआ है | उन्होंने ने अपनी अपनी बुद्धि एवं निजी अनुभूति के आधार पर अध्यात्म सम्बन्धी सिधान्तो का निरूपण  किया है | उनमे पारस्परिक मत भिन्न है , उनके चिंतन मनन के आधार पर स्थित सिद्धांत पूर्णत: सत्य नहीं हो सकते | वे भ्रान्ति जनक है | यही कारन है आज के पढ़े-लिखे विद्वान इनके द्वारा प्रतिपादित सैद्धांतिक ग्रंथो का अनुशीलन कर भ्रमित  जाते हैं | अत: सही सिद्धांत के बोध हेतु ऐसे सदग्रंथ की महती आवश्यकता है जिसे किसी महर्षि , सद्गुरु  ने अपनी समाधिजन्य अनुभूति पर लिखा हो | 

 १.  अक्षर से मन प्रकट हुआ | अक्षर से शांत परमाणुओं में गति एवं कम्प प्रकट हुआ एवं अनंत ब्रह्माण्ड सृष्टि चित्र सामने आ खड़ा हुआ | 
२. सत्व , रज एवं तम  इन तीन गुणों की सम्य्वस्था को प्रकृति कहते हैं | 
३. सत्व , रज एवं तम ये प्रकृति के तीन गुण  हैं | 
    सत्व गुण  में  - प्रकाश 
     रजोगुण में - प्रवृति 
     तमोगुण में - अंधकार 
४.  इन तीनो गुणों के अनत प्रकार त्रिधात मिश्रण से सृष्टि में अनंत  प्रकार के पदार्थ होते हैं | 
५. अक्षर के ईक्षण  द्वारा एवं अक्षर  स्पर्श से परमाणुओं में कम्प हुए | 
६. कम्प होकर एक परमाणु दूसरे से मिलने लगे | दो मिलकर द्वयणुक , तीन मिलकर त्रयणुक , चार मिलकर चतुष्काणुक , पांच मिलाकर पंचानुक  बन गए | 
७. समूह पंचानुक के योग से सृष्टि का महामण्डल , महाकाश प्रकट हुआ | 
८. एक बब्रह्माण्ड का आधारभूत  महाकाश उत्पन्न हुआ और उसी आकाश के आधार पर सृष्टि का फैलान होने लगा | 
९. सजीव एवं निर्जीव  ये दो प्रकार की सृष्टि होती है एवं स्थावर एवं जंगम दो प्रकार के सृष्टि हैं | 
१०. शाब्दिक और प्राकृत ये दो प्रकार की रचनाये हैं | 
११.  आकाश से - वायु 
       वायु से - अग्नि 
      अग्नि से  - जल 
     जल  - पृथ्वी उत्पन्न हुई 
१२.  यही पांच तत्व अर्थात पंचभूत सृष्टि के कारण है | 
१३. आकाश का गुण - शब्द 
       वायु का गुण  - शब्द , स्पर्श 
       अग्नि का गुण  - शब्द , स्पर्श, रूप 
        जल का गुण  - शब्द , स्पर्श, रूप , रस 
         पृथ्वी का  गुण  - शब्द , स्पर्श, रूप , रस , गंध 
१४. शब्द,स्पर्श,रूप,रस ,गंध ये पंच तन्मात्रा कहे जाते हैं | यही पंच  ज्ञानइन्द्रिय के विषय भी है 

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