योग तत्व दर्शन
अध्यात्म विद्या के अंतर्गंत वाह्य तत्व ज्ञान एवं अभ्यन्तर भेद साधन ये दो प्रमुख पक्ष है | इनका पूर्ण बोध होने पर ही जिज्ञासु तथा साधक सद्गुरु शरण में रह कर , चिरकाल तक साधना कर जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य को प्राप्त करते हैं |
सर्व प्रथम वाह्य तत्व ज्ञान का निर्भ्रांत बोध होना आवश्यक है | विगत ढाई हज़ार वर्षो से विभिन्न मतवादों का प्रादुर्भाव हुआ है | उन्होंने ने अपनी अपनी बुद्धि एवं निजी अनुभूति के आधार पर अध्यात्म सम्बन्धी सिधान्तो का निरूपण किया है | उनमे पारस्परिक मत भिन्न है , उनके चिंतन मनन के आधार पर स्थित सिद्धांत पूर्णत: सत्य नहीं हो सकते | वे भ्रान्ति जनक है | यही कारन है आज के पढ़े-लिखे विद्वान इनके द्वारा प्रतिपादित सैद्धांतिक ग्रंथो का अनुशीलन कर भ्रमित जाते हैं | अत: सही सिद्धांत के बोध हेतु ऐसे सदग्रंथ की महती आवश्यकता है जिसे किसी महर्षि , सद्गुरु ने अपनी समाधिजन्य अनुभूति पर लिखा हो |
१. अक्षर से मन प्रकट हुआ | अक्षर से शांत परमाणुओं में गति एवं कम्प प्रकट हुआ एवं अनंत ब्रह्माण्ड सृष्टि चित्र सामने आ खड़ा हुआ |
२. सत्व , रज एवं तम इन तीन गुणों की सम्य्वस्था को प्रकृति कहते हैं |
३. सत्व , रज एवं तम ये प्रकृति के तीन गुण हैं |
सत्व गुण में - प्रकाश
रजोगुण में - प्रवृति
तमोगुण में - अंधकार
४. इन तीनो गुणों के अनत प्रकार त्रिधात मिश्रण से सृष्टि में अनंत प्रकार के पदार्थ होते हैं |
५. अक्षर के ईक्षण द्वारा एवं अक्षर स्पर्श से परमाणुओं में कम्प हुए |
६. कम्प होकर एक परमाणु दूसरे से मिलने लगे | दो मिलकर द्वयणुक , तीन मिलकर त्रयणुक , चार मिलकर चतुष्काणुक , पांच मिलाकर पंचानुक बन गए |
७. समूह पंचानुक के योग से सृष्टि का महामण्डल , महाकाश प्रकट हुआ |
८. एक बब्रह्माण्ड का आधारभूत महाकाश उत्पन्न हुआ और उसी आकाश के आधार पर सृष्टि का फैलान होने लगा |
९. सजीव एवं निर्जीव ये दो प्रकार की सृष्टि होती है एवं स्थावर एवं जंगम दो प्रकार के सृष्टि हैं |
१०. शाब्दिक और प्राकृत ये दो प्रकार की रचनाये हैं |
११. आकाश से - वायु
वायु से - अग्नि
अग्नि से - जल
जल - पृथ्वी उत्पन्न हुई
१२. यही पांच तत्व अर्थात पंचभूत सृष्टि के कारण है |
१३. आकाश का गुण - शब्द
वायु का गुण - शब्द , स्पर्श
अग्नि का गुण - शब्द , स्पर्श, रूप
जल का गुण - शब्द , स्पर्श, रूप , रस
पृथ्वी का गुण - शब्द , स्पर्श, रूप , रस , गंध
१४. शब्द,स्पर्श,रूप,रस ,गंध ये पंच तन्मात्रा कहे जाते हैं | यही पंच ज्ञानइन्द्रिय के विषय भी है
अध्यात्म विद्या के अंतर्गंत वाह्य तत्व ज्ञान एवं अभ्यन्तर भेद साधन ये दो प्रमुख पक्ष है | इनका पूर्ण बोध होने पर ही जिज्ञासु तथा साधक सद्गुरु शरण में रह कर , चिरकाल तक साधना कर जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य को प्राप्त करते हैं |
सर्व प्रथम वाह्य तत्व ज्ञान का निर्भ्रांत बोध होना आवश्यक है | विगत ढाई हज़ार वर्षो से विभिन्न मतवादों का प्रादुर्भाव हुआ है | उन्होंने ने अपनी अपनी बुद्धि एवं निजी अनुभूति के आधार पर अध्यात्म सम्बन्धी सिधान्तो का निरूपण किया है | उनमे पारस्परिक मत भिन्न है , उनके चिंतन मनन के आधार पर स्थित सिद्धांत पूर्णत: सत्य नहीं हो सकते | वे भ्रान्ति जनक है | यही कारन है आज के पढ़े-लिखे विद्वान इनके द्वारा प्रतिपादित सैद्धांतिक ग्रंथो का अनुशीलन कर भ्रमित जाते हैं | अत: सही सिद्धांत के बोध हेतु ऐसे सदग्रंथ की महती आवश्यकता है जिसे किसी महर्षि , सद्गुरु ने अपनी समाधिजन्य अनुभूति पर लिखा हो |
१. अक्षर से मन प्रकट हुआ | अक्षर से शांत परमाणुओं में गति एवं कम्प प्रकट हुआ एवं अनंत ब्रह्माण्ड सृष्टि चित्र सामने आ खड़ा हुआ |
२. सत्व , रज एवं तम इन तीन गुणों की सम्य्वस्था को प्रकृति कहते हैं |
३. सत्व , रज एवं तम ये प्रकृति के तीन गुण हैं |
सत्व गुण में - प्रकाश
रजोगुण में - प्रवृति
तमोगुण में - अंधकार
४. इन तीनो गुणों के अनत प्रकार त्रिधात मिश्रण से सृष्टि में अनंत प्रकार के पदार्थ होते हैं |
५. अक्षर के ईक्षण द्वारा एवं अक्षर स्पर्श से परमाणुओं में कम्प हुए |
६. कम्प होकर एक परमाणु दूसरे से मिलने लगे | दो मिलकर द्वयणुक , तीन मिलकर त्रयणुक , चार मिलकर चतुष्काणुक , पांच मिलाकर पंचानुक बन गए |
७. समूह पंचानुक के योग से सृष्टि का महामण्डल , महाकाश प्रकट हुआ |
८. एक बब्रह्माण्ड का आधारभूत महाकाश उत्पन्न हुआ और उसी आकाश के आधार पर सृष्टि का फैलान होने लगा |
९. सजीव एवं निर्जीव ये दो प्रकार की सृष्टि होती है एवं स्थावर एवं जंगम दो प्रकार के सृष्टि हैं |
१०. शाब्दिक और प्राकृत ये दो प्रकार की रचनाये हैं |
११. आकाश से - वायु
वायु से - अग्नि
अग्नि से - जल
जल - पृथ्वी उत्पन्न हुई
१२. यही पांच तत्व अर्थात पंचभूत सृष्टि के कारण है |
१३. आकाश का गुण - शब्द
वायु का गुण - शब्द , स्पर्श
अग्नि का गुण - शब्द , स्पर्श, रूप
जल का गुण - शब्द , स्पर्श, रूप , रस
पृथ्वी का गुण - शब्द , स्पर्श, रूप , रस , गंध
१४. शब्द,स्पर्श,रूप,रस ,गंध ये पंच तन्मात्रा कहे जाते हैं | यही पंच ज्ञानइन्द्रिय के विषय भी है
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