भजन-सुरति उलटि अवलोक जी
सुरति उलटि अवलोक जी , तोहिं पीव मिलेंगे || टेक ||
अद्भुत लीला अमरलोक की , दर्शन से चिद कमल खिलेंगे |
बिन चक्षु वहां दृश्य विलोकित , वाणी बिन स्वर शब्द भनेँगे ||
श्रुत श्रवण बिन गंध घ्राण बिन , बिन जिह्वा रस सर्व मिलेंगे |
बिन पग गमन करे वहां हंसा , बिन कर चेतन कर्म करेंगे ||
कौन आनंद कहूं मैं तुमसे , वांछित फल संकल्प मिलेंगे |
कहैं सदाफल धन्य वो हंसा , प्रभु आधार गति प्रेम सनेंगे ||
सुरति उलटि अवलोक जी , तोहिं पीव मिलेंगे || टेक ||
अद्भुत लीला अमरलोक की , दर्शन से चिद कमल खिलेंगे |
बिन चक्षु वहां दृश्य विलोकित , वाणी बिन स्वर शब्द भनेँगे ||
श्रुत श्रवण बिन गंध घ्राण बिन , बिन जिह्वा रस सर्व मिलेंगे |
बिन पग गमन करे वहां हंसा , बिन कर चेतन कर्म करेंगे ||
कौन आनंद कहूं मैं तुमसे , वांछित फल संकल्प मिलेंगे |
कहैं सदाफल धन्य वो हंसा , प्रभु आधार गति प्रेम सनेंगे ||
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