मन तुम नाहक द्वन्द मचायो
मन तुम नाहक द्वन्द मचायो ||
करि आसनान छुवा नहीं काहू , पाती फूल चढ़ाये |
मूरति से दुनिया फल मांगे , अपने हाथ बनाये ||
यह जग पूजे देव देहरा , तीरथ वर्त अन्हाये |
चलत फिरत में पाँव थकित भय , यह दुःख कहाँ समाये ||
झूठी काया झूठी माया , झूठे झूठ लखाये |
बाँझिन गाय दूध नहीं देहे , माखन कहाँ से पाये ||
साँचे के संग साँच बसत है , झूठे मारी हटाए |
कहै कबीर जहाँ साच बसतु है , सहजे दर्शन पाये ||
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