Saturday, June 8, 2019

मन तुम नाहक द्वन्द मचायो

                   मन तुम नाहक द्वन्द मचायो 


मन तुम नाहक द्वन्द मचायो || 

करि आसनान छुवा नहीं काहू , पाती फूल चढ़ाये | 
मूरति से दुनिया फल मांगे , अपने हाथ बनाये || 

यह जग पूजे देव देहरा , तीरथ वर्त अन्हाये | 
चलत फिरत में पाँव थकित भय , यह दुःख कहाँ समाये || 

झूठी काया झूठी माया , झूठे झूठ लखाये | 
बाँझिन गाय दूध नहीं देहे , माखन कहाँ से पाये || 

साँचे के संग साँच बसत है , झूठे मारी हटाए | 
कहै कबीर जहाँ साच बसतु है , सहजे दर्शन पाये || 

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