Saturday, June 8, 2019

मन तुम नाहक द्वन्द मचायो

                   मन तुम नाहक द्वन्द मचायो 


मन तुम नाहक द्वन्द मचायो || 

करि आसनान छुवा नहीं काहू , पाती फूल चढ़ाये | 
मूरति से दुनिया फल मांगे , अपने हाथ बनाये || 

यह जग पूजे देव देहरा , तीरथ वर्त अन्हाये | 
चलत फिरत में पाँव थकित भय , यह दुःख कहाँ समाये || 

झूठी काया झूठी माया , झूठे झूठ लखाये | 
बाँझिन गाय दूध नहीं देहे , माखन कहाँ से पाये || 

साँचे के संग साँच बसत है , झूठे मारी हटाए | 
कहै कबीर जहाँ साच बसतु है , सहजे दर्शन पाये || 

शान्तिपाठ

द्यौ शान्ति  महि शान्ति  हो , आप शान्ति  शशि शान्ति  |
औषधियों की शान्ति  हो , और वनस्पति शान्ति  ||

विश्व देवों की शान्ति  हो , अक्षर अंतर शान्ति  |
पञ्चशब्द की शान्ति  हो , अंतरिक्ष की शान्ति  ||

शान्ति  समुद्र अपार हैं , अमित अनंत है शान्ति  |
सो स्वरुप पर शान्ति  हो , सर्व शान्ति  हो शान्ति ||

निः अक्षर की शान्ति हो , नित्य असीम है शान्ति |
आप शान्ति सब शान्ति है , सर्व शान्तिमय शान्ति ||

अज सुकृत गुरु शान्ति हो , स्वयंसिद्ध गुरु शान्ति |
अभ्याससिद्ध गुरु शान्ति हो , परम्परा गुरु शान्ति ||

सन्त अन्तरी शान्ति हो , जीवनमुक्त की शान्ति |
पूर्ण ज्ञान की शान्ति हो , भक्ति महासुख शान्ति ||

सहज समाधि शान्ति हो , निज स्वरुप की शान्ति |
दया धर्म की शान्ति हो , निज स्वरुप की शान्ति ||

विराग त्याग की शान्ति हो, उदासीनता शान्ति |
सेवाजित शिष्य शान्ति हो , सत्य शान्ति हो शान्ति ||

हे प्रभु शान्ति स्वरुप हो , शान्ति शान्तिमय शान्ति |
शान्ति शान्ति जन शान्ति हो , पूर्ण शान्तिमय शान्ति ||

हे प्रभु शान्ति प्रदान कर , दूर हो सर्व अशान्ति |
देव 'सदाफल ' शान्तिमय , शान्ति शान्ति सुख शान्ति ||




वन्दना

गुरू शिष्य हम प्रभु की शरण में , भक्ति अपनी दीजिये |
शीध्र प्राकृत त्रैगुणो को , दूर हमसे कीजिये ||

शिष्य गुरु में प्रेम शान्ति , हर्ष विश्व उद्धार में |
योगविद्या नीति बल हो , वित्त बल उपकार में ||

अटल निज कर्त्तव्य पथ में , साहस बल दिन दिन बढे |
जिज्ञासु होकर विश्व आवे , कर्मगति हमसे पढ़े ||

जडलोक चेतनलोक प्रभु से , नहीं कभी अभिमान हो |
विनती 'सदाफल ' शिष्य गुरु की , प्रभु  दया सन्मान हो ||

पराविद्या योग दुर्लभ , मंत्र विश्व उद्धार का |
प्रभु गुप्त तत्त्व सो दीन्ह हमको , भार जग परचार का ||

अधिकार मानव जाति इसके , प्रेम धारा जिन बहा |
जिज्ञासुपन से देउँ शिक्षा , करि परीक्षा रत रहा ||

दुष्ट दुर्जन जग लुटेरे , विघ्न कर उपकार में |
आततायी बाधक राक्षसों को , क्या करूँ इस बार में ||

इनको सुबुद्धि दे दयामय , समझ महिमा योग की |
निर्विघ्न विश्व प्रचार हो , विनती सदाफल योग की ||

पराविद्या पत्र शाखा , फूल फल विस्तार हो |
अनन्यगति फल के कोलाहल , पक्षिमय संसार हो ||

गुरु शिष्य हमको फल प्रदायिनी , ज्ञान सर्व अगार हो |
जन 'सदाफल ' प्रभु शरण में , जिवन प्राण आधार हो ||

प्रभु कल्प सन्त समाज उत्तम , सर्व धर्म आचार्य हैं |
जिमि नद्या आश्रित सिंधु के है , विश्व पथमय कार्य हैं ||

प्रभु सत्य सन्त समाज तेरा , आप रक्षा कीजिए |
जन 'सदाफल ' ज्ञान भक्ति , वृद्धि दिन दिन कीजिये || 

मेरा रक्षक महाप्रभु हैं

ये तो सर्व-विदित हैं की सदगुरु अपने शिष्यों पर सदा दया रखते हैं एवं उनका योग क्षेम पूरा करते हैं।  इसका अनुभव अपने जीवन में घटित कुछ ऐसी घट...