गुरू शिष्य हम प्रभु की शरण में , भक्ति अपनी दीजिये |
शीध्र प्राकृत त्रैगुणो को , दूर हमसे कीजिये ||
शिष्य गुरु में प्रेम शान्ति , हर्ष विश्व उद्धार में |
योगविद्या नीति बल हो , वित्त बल उपकार में ||
अटल निज कर्त्तव्य पथ में , साहस बल दिन दिन बढे |
जिज्ञासु होकर विश्व आवे , कर्मगति हमसे पढ़े ||
जडलोक चेतनलोक प्रभु से , नहीं कभी अभिमान हो |
विनती 'सदाफल ' शिष्य गुरु की , प्रभु दया सन्मान हो ||
पराविद्या योग दुर्लभ , मंत्र विश्व उद्धार का |
प्रभु गुप्त तत्त्व सो दीन्ह हमको , भार जग परचार का ||
अधिकार मानव जाति इसके , प्रेम धारा जिन बहा |
जिज्ञासुपन से देउँ शिक्षा , करि परीक्षा रत रहा ||
दुष्ट दुर्जन जग लुटेरे , विघ्न कर उपकार में |
आततायी बाधक राक्षसों को , क्या करूँ इस बार में ||
इनको सुबुद्धि दे दयामय , समझ महिमा योग की |
निर्विघ्न विश्व प्रचार हो , विनती सदाफल योग की ||
पराविद्या पत्र शाखा , फूल फल विस्तार हो |
अनन्यगति फल के कोलाहल , पक्षिमय संसार हो ||
गुरु शिष्य हमको फल प्रदायिनी , ज्ञान सर्व अगार हो |
जन 'सदाफल ' प्रभु शरण में , जिवन प्राण आधार हो ||
प्रभु कल्प सन्त समाज उत्तम , सर्व धर्म आचार्य हैं |
जिमि नद्या आश्रित सिंधु के है , विश्व पथमय कार्य हैं ||
प्रभु सत्य सन्त समाज तेरा , आप रक्षा कीजिए |
जन 'सदाफल ' ज्ञान भक्ति , वृद्धि दिन दिन कीजिये ||