Sunday, November 17, 2019

मेरा रक्षक महाप्रभु हैं

ये तो सर्व-विदित हैं की सदगुरु अपने शिष्यों पर सदा दया रखते हैं एवं उनका योग क्षेम पूरा करते हैं।  इसका अनुभव अपने जीवन में घटित कुछ ऐसी घटनाये जो आज भी मेरे मानस पटल पर सजीव है और आज जो भी मैं हूँ सब सदगुरु की दया दृष्टि का ही प्रतिफल है। सदगुरु सत्ता कैसे विषम परिस्थियों में अपने शिष्यों की रक्षा करते हैं , इसी से जुडी एक संस्मरण आपसे साझा करने की प्रेरणा सदगुरु दया  से हुई।

           मैं गणेश प्रसाद झारखण्ड राज्य में बोकारो जिला के बेरमो कोयलांचल क्षेत्र का निवासी हूँ। यहाँ कोल् फील्ड लिमिटेड से २०१७ में सेवा निवृत हुआ। परिवार में पत्नी समेत तीनो सुपुत्र विहंगम योग संस्थान से जुड़े हुए हैं और सदगुरु  की दया से आज सभी अपने क्षेत्र में प्रगतिशील हैं।  ये घटना २०१२ की हैं  जब मै अपने सबसे छोटे सुपुत्र चन्दन कुमार, जिनकी इंजीनियरिंग की पढाई पूरी हो चुकी तथा दिल्ली में जॉब लगी थी, के साथ ट्रैन से दिल्ली के लिए जा रहा था।  हमने चंद्रपुरा जंक्शन से शाम की ट्रैन झारखण्ड एक्सप्रेस पकड़ी जो की अगली सुबह दिल्ली पहुचानी थी।
         ट्रैन अपने द्रुत गति से दिल्ली के लिए अग्रसर थी।  मन में ख़ुशी  थी और संतुष्टि का भाव परस्पर उठ आता था , सदगुरु  की दया से आज मेरे तीनो पुत्र अपने पैरो पे खड़े थे।  ये सब उस मालिक की दया थी की सारे सुपुत्र अपने अपने प्रारब्ध के अनुसार जॉब में लगे थे।  ट्रैन चली जा रही थी शाम से कब रात हुई इसका पता ही नहीं चला।  स्टेशन निकलते गए गया औरंगाबाद इत्यादि स्टेशन पर ट्रैन यथावत गति से अपनी दूरी तय करती गयी।  रात्रि भोजन के पश्चात् पुत्र चन्दन सोने की तयारी करने लगे।  चन्दन की जॉइनिंग  Aricent कंपनी में थी जिसके लिए सारे ओरिजिनल सर्टिफिकेट साथ ले जा रहा था जो की एक बैग में मेरे पास ही था।  चन्दन साइड लोअर सीट पे सो गए।  मध्य रात्रि के ३ घंटे बाद ट्रैन मुग़ल सराय जंक्शन से गुजरनी  थी जो की ट्रेनों से सामान चोरी के लिए प्रसिद्ध थी।  जब ट्रैन लगभग उसी क्षेत्र में थी तो सदगुरु  प्रेरणा से मैं साधनारत था |
 साधना के पश्चात् मैं अपने सीट पर बैठा रहा।
        सुबह जब सबकी नींद खुली तो लोग किसी चोरी की चर्चा करते हुए नज़र आ रहे थे।  उतसुक्तावस मैंने किसी एक सज्जन से पूछा क्या हुआ सुबह से किसी अनजान चोरी की शोर गुल सा प्रतीत हो रहा है।  सज्जन ने कहा भाई साहब कल रात हमारे बोगी में कुछ चोर पैसेंजर के रूप में घूस आये थे और देर रात सभी का कुछ न कुछ सामान कोई बैग, अटैची या सुटकेश  चुरा ले गए। थोड़ी ही देर बाद एक युवती की रोने की सिसकी सुनाई दी, उन चोरो ने उसके सारे सामन चुरा ले गए थे।  अब उसके पास न तो पैसे थे न कुछ।  उसकी असहाय हालत और परिस्थिति को देख हमारा भी दिल द्रवित हो आया।  फिर हमने आपस में ही कुछ पैसे चंदा करके उसको दिया ताकि कम से कम  अपने घर तक तो जा सके। इसी सब में हमारा ध्यान अपने बैग पर पड़ा, जहाँ सभी यात्री के कुछ न कुछ सामान पर उन चोरो ने हाथ साफ़ किया वही हमारा सामान  सही सलामत उसी जगह पर सुरक्षित रखा हुआ था।  मन ही मन सदगुरु  सत्ता को नमन और उनकी दया को  साक्षी करते हुए रोम रोम में  श्रद्धा के भाव पल्लिवत हो रहा था की यदि आज उनकी दया ना  होती और अगर बाकी लोगो की तरह हमारा बैग भी चोरी हो गया होता तो सुपुत्र चन्दन का करियर शुरू होते ही कई उलझनों से घिर जाती।  ओरिजिनल सर्टिफिकेट का पुनर्निमाण कितना कष्टदायक है ये तो सब जानते हैं।
    आज चन्दन एक मल्टीनेशनल कंपनी में हैदराबाद में कार्यरत है।  लेकिन आज भी वो घटना जब भी स्मरण होता है तो एक अजीब सा डर डॉक्यूमेंट के खोने का और साथ ही एक विश्वास सदगुरु  प्रभु पर हर क्षण शिष्यों की रक्षा के लिए दोनों भाव दिल में घर कर जाते हैं और फिर सदगुरु  चरणों में शीश श्रद्धा से नतमष्तक हो जाता है और मन में यही भाव आता है की ....

    "मेरा रक्षक महा प्रभु है , चिंता मन तू काहे किया " 



                                                                                                                   गणेश प्रसाद साव 
      स्थान - बेरमो कोयलांचल                                                                        सेंट्रल कॉलोनी 
                                                                                                                  पो०  - मकोली (फुसरो )
                                                                                                                  जिला - बोकारो (झारखण्ड ) 
                                                                                                                  पिन - 829144 
                                                                                                                  मो० न० - 7488782178 

Saturday, June 8, 2019

मन तुम नाहक द्वन्द मचायो

                   मन तुम नाहक द्वन्द मचायो 


मन तुम नाहक द्वन्द मचायो || 

करि आसनान छुवा नहीं काहू , पाती फूल चढ़ाये | 
मूरति से दुनिया फल मांगे , अपने हाथ बनाये || 

यह जग पूजे देव देहरा , तीरथ वर्त अन्हाये | 
चलत फिरत में पाँव थकित भय , यह दुःख कहाँ समाये || 

झूठी काया झूठी माया , झूठे झूठ लखाये | 
बाँझिन गाय दूध नहीं देहे , माखन कहाँ से पाये || 

साँचे के संग साँच बसत है , झूठे मारी हटाए | 
कहै कबीर जहाँ साच बसतु है , सहजे दर्शन पाये || 

शान्तिपाठ

द्यौ शान्ति  महि शान्ति  हो , आप शान्ति  शशि शान्ति  |
औषधियों की शान्ति  हो , और वनस्पति शान्ति  ||

विश्व देवों की शान्ति  हो , अक्षर अंतर शान्ति  |
पञ्चशब्द की शान्ति  हो , अंतरिक्ष की शान्ति  ||

शान्ति  समुद्र अपार हैं , अमित अनंत है शान्ति  |
सो स्वरुप पर शान्ति  हो , सर्व शान्ति  हो शान्ति ||

निः अक्षर की शान्ति हो , नित्य असीम है शान्ति |
आप शान्ति सब शान्ति है , सर्व शान्तिमय शान्ति ||

अज सुकृत गुरु शान्ति हो , स्वयंसिद्ध गुरु शान्ति |
अभ्याससिद्ध गुरु शान्ति हो , परम्परा गुरु शान्ति ||

सन्त अन्तरी शान्ति हो , जीवनमुक्त की शान्ति |
पूर्ण ज्ञान की शान्ति हो , भक्ति महासुख शान्ति ||

सहज समाधि शान्ति हो , निज स्वरुप की शान्ति |
दया धर्म की शान्ति हो , निज स्वरुप की शान्ति ||

विराग त्याग की शान्ति हो, उदासीनता शान्ति |
सेवाजित शिष्य शान्ति हो , सत्य शान्ति हो शान्ति ||

हे प्रभु शान्ति स्वरुप हो , शान्ति शान्तिमय शान्ति |
शान्ति शान्ति जन शान्ति हो , पूर्ण शान्तिमय शान्ति ||

हे प्रभु शान्ति प्रदान कर , दूर हो सर्व अशान्ति |
देव 'सदाफल ' शान्तिमय , शान्ति शान्ति सुख शान्ति ||




वन्दना

गुरू शिष्य हम प्रभु की शरण में , भक्ति अपनी दीजिये |
शीध्र प्राकृत त्रैगुणो को , दूर हमसे कीजिये ||

शिष्य गुरु में प्रेम शान्ति , हर्ष विश्व उद्धार में |
योगविद्या नीति बल हो , वित्त बल उपकार में ||

अटल निज कर्त्तव्य पथ में , साहस बल दिन दिन बढे |
जिज्ञासु होकर विश्व आवे , कर्मगति हमसे पढ़े ||

जडलोक चेतनलोक प्रभु से , नहीं कभी अभिमान हो |
विनती 'सदाफल ' शिष्य गुरु की , प्रभु  दया सन्मान हो ||

पराविद्या योग दुर्लभ , मंत्र विश्व उद्धार का |
प्रभु गुप्त तत्त्व सो दीन्ह हमको , भार जग परचार का ||

अधिकार मानव जाति इसके , प्रेम धारा जिन बहा |
जिज्ञासुपन से देउँ शिक्षा , करि परीक्षा रत रहा ||

दुष्ट दुर्जन जग लुटेरे , विघ्न कर उपकार में |
आततायी बाधक राक्षसों को , क्या करूँ इस बार में ||

इनको सुबुद्धि दे दयामय , समझ महिमा योग की |
निर्विघ्न विश्व प्रचार हो , विनती सदाफल योग की ||

पराविद्या पत्र शाखा , फूल फल विस्तार हो |
अनन्यगति फल के कोलाहल , पक्षिमय संसार हो ||

गुरु शिष्य हमको फल प्रदायिनी , ज्ञान सर्व अगार हो |
जन 'सदाफल ' प्रभु शरण में , जिवन प्राण आधार हो ||

प्रभु कल्प सन्त समाज उत्तम , सर्व धर्म आचार्य हैं |
जिमि नद्या आश्रित सिंधु के है , विश्व पथमय कार्य हैं ||

प्रभु सत्य सन्त समाज तेरा , आप रक्षा कीजिए |
जन 'सदाफल ' ज्ञान भक्ति , वृद्धि दिन दिन कीजिये || 

मेरा रक्षक महाप्रभु हैं

ये तो सर्व-विदित हैं की सदगुरु अपने शिष्यों पर सदा दया रखते हैं एवं उनका योग क्षेम पूरा करते हैं।  इसका अनुभव अपने जीवन में घटित कुछ ऐसी घट...