भजन - अपनी भगतिया सद्गुरु साहेब
अपनी भगतिया सद्गुरु साहेब, मोहे कृपा कर देहुँ हो |
जुगन जुगन भव भटकत बीते , अब भव बाहर लेहुँ हो ||
पशु पक्षी कृमि आदिक योनिन , में भरमेउ बहु बार हो |
नर तन अबहीं कृपा कर दीन्हों , अब करो प्रभु उबार हो ||
हरहुं भव-दुःख देहुँ अमर सुख, सर्वदाता सर्वरक्ष हो |
जो तुम चाहीहूँ होई है सोई , सब कुछ तुम्हरे हाथ हो ||
करहुं अनुग्रह प्रीतम साहब , तुम अंशक मैं अंश हो |
तुम सूरज मैं किरण तुम्हारी , तुम वंशक मैं वंश हो ||
मोहि तो इतनेही भेद हो साहेब , यही भेद दुःख मूल हो |
करो कृपा न सो यह भेद ही , हो अति अनुकूल हो ||
आस त्रास भय भाव सकल ही , मम मन कर चक्रजाल हो |
सकल समिति तुम्हरो पद लागे , मेहि के यही अर्ज हाल हो ||
अपनी भगतिया सद्गुरु साहेब, मोहे कृपा कर देहुँ हो |
जुगन जुगन भव भटकत बीते , अब भव बाहर लेहुँ हो ||
पशु पक्षी कृमि आदिक योनिन , में भरमेउ बहु बार हो |
नर तन अबहीं कृपा कर दीन्हों , अब करो प्रभु उबार हो ||
हरहुं भव-दुःख देहुँ अमर सुख, सर्वदाता सर्वरक्ष हो |
जो तुम चाहीहूँ होई है सोई , सब कुछ तुम्हरे हाथ हो ||
करहुं अनुग्रह प्रीतम साहब , तुम अंशक मैं अंश हो |
तुम सूरज मैं किरण तुम्हारी , तुम वंशक मैं वंश हो ||
मोहि तो इतनेही भेद हो साहेब , यही भेद दुःख मूल हो |
करो कृपा न सो यह भेद ही , हो अति अनुकूल हो ||
आस त्रास भय भाव सकल ही , मम मन कर चक्रजाल हो |
सकल समिति तुम्हरो पद लागे , मेहि के यही अर्ज हाल हो ||